
ऋषिकेश त्रिवेदी ////गंगा नदी जैसी सैकड़ों नदियां हैं लेकिन उसकी पवित्रता आज भी कायम है,गंगा से लंबी,विशाल,और भी नदियां हैं,कई नदियों का तो उदगम भी वहीं से हुआ जहां से गंगा का हुआ,कुछ समानांतर तो कुछ अन्य दिशाओं में बह निकली।लेकिन जो विशेषता गंगा में है वह दूसरी नदियों में ना के बराबर है।विशाल से विशाल नदियां चाहे ब्रम्हपुत्र हो,अमेजन, वाँगो हो गंगा इनके सामने कुछ भी नहीं,फिर उत्कृष्टता में गंगा जैसी कोई भी नदी नहीं।गंगा जीवंत नदी है इसका पानी बोतल में भर कर रख लो वर्षों तक खराब नहीं होगा,लेकिन अन्य नदियों का पानी बोतल में खराब हो जाता है।केमिकली विशेषता की वजह से ऐसा होता है,ऐसा नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं।हजारों वर्षों से लाशें बहाई गई,हड्डियां बहाई गई सब के सब गंगा में लीन हो गई।गंगा के पानी में सब कुछ लीन हो जाता है।लाश डालने से नदियों का पानी सड़ेगा लेकिन गंगा में ऐसा नहीं होता लाश व हड्डी ही गल कर गायब हो जाती है।गंगा नदी को लेकर बड़ा वैज्ञानिक परीक्षण हो चुका है।परीक्षण में यह सिद्ध भी हो चुका है कि इसका पानी असाधारण है,क्यों असाधारण है जबकि खनिज वही उदगम भी वहीं अन्य नदियां आकर इसीमे मिलती हैं फिर भी सबसे अलग क्यों,वैज्ञानिकों और पुराणों की माने तो कोई व्यक्ति गंगा नदी के पास केवल आ कर बैठ जाता है उतने में ही नदी का पानी प्रभावित हो जाता है।और व्यक्ति की तरंगों को ही गंगा नदी का पानी ले लेता है।पानी शीघ्रता से चार्ज हो जाता है।पानी पर छाप बन जाती है, लाखों लाखों वर्षों तक लाखों मनीषियों ने यहां बैठकर तपस्या की,जिससे नदी की रेत पानी आबोहवा सब कुछ तरंगित हो गई,गंगा नदी में डुबकी लगाने से पाप धुले ना धुले करोड़ों करोड़ों मनीषियों की छाप से जरूर आप बदल सकते हैं।गंगा की यात्रा केवल यात्रा नहीं बल्कि आध्यात्मिक यात्रा भी है,वैज्ञानिकों या पुराणों की माने तो अनेक तीर्थंकरों के तपस्याओं से अणुओं परमाणुओं के प्रभाव से गंगा नदी के उदगम से और पहाड़ी क्षेत्रों में चुंबकीय प्रभाव समाहित हो गया,यहां कण कण प्रभाव को पी लेता है समाहित हो जाता है,लाखों लोगों का यहां मुक्ति के लिए आना लाखों लोगों की तरंगों को आत्मसात कर लेने की वजह से गंगा विशेष है।
जैनियों ने जो प्रयोग पारसनाथ हिल्स पर लाखों वर्षों तक तपस्या की।ठीक वैसा ही हिंदुओं ने गंगा के किनारों पर किए,,लाखों लोगों का अंतिम घटनाओं के लिए उपलब्ध हो जाना,लाखों लोगों की ऊर्जा उस पानी पर किनारों पर छोड़ आने की वजह से ही है जब लोग डुबकी लगा कर वापस आते है तो उनमें कुछ तो बदलाव आ ही जाता है।
करोड़ों वर्ष पूर्व कृष्ण जी ने कहा था हे अर्जुन,नदियों में मै गंगा हूं,आदि मध्य अंत मै ही हूं।
फिलहाल महाकुंभ स्नान का अंतिम क्षण आ रहा है,वहीं करोड़ों लोगो का यहां आने से कुछ कुछ ना कुछ तो उन्हें लाभ मिलेगा ही।चाहे वह उनमें आनशिक बदलाव ही क्यों ना हो।
