वर्षों पुरानी परंपरा को जीवित रखने में सफल है कान्य कुब्ज ब्राम्हण समाज,महीने भर से चल रहा परंपरागत बैसवाड़ी फाग कार्यक्रम

ऋषिकेश त्रिवेदी////नींबू रंग रंगीली,सब रस भरी दुकानन मां,जब लेन को आवै श्याम सुंदरी, लियो जौंन जाके मन मां । जैसी धुन में…..परंपरागत बैसवाड़ी फाग कार्यक्रम का आयोजन अनवरत कर पाने में कांन्य कुब्ज समाज सफल है। वर्षों पूर्व प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम में समाज के कुछ लोग ही शामिल हो पाते थे,लेकिन अब समाज के प्रबुद्ध वर्ग की सक्रियता से लोग विशेष रुचि लेने लगे हैं।बसंत पंचमी से शुरू होने वाले फाग कार्यक्रम में धीरे धीरे रंग चढ़ता नजर आ रहा है।जैसे जैसे होली करीब आ रही है वैसे वैसे समाज के सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है। कांन्य कुब्ज ब्राम्हण समाज के इस बैसवाडी फाग कार्यक्रम की खास बात यह है कि पूरे महीने भर यानी बसंत पंचमी से लेकर होली के दिन तक अलग अलग सदस्यों के घर जाकर फाग का परंपरागत गायन किया जाता है,ढोलक मंजीरा की विशेष धुन में फाग गाया जाता है।गुरुवार की शाम राकेश तिवारी जी के सदर बाजार स्थित निवास पर कार्यक्रम आयोजित हुआ । जहां समाज के सदस्य एकत्रित हुए और देर रात तक फाग गायन का दौर चलता रहा।

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